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तोरई (Ridge Gourd) की खेती और मंडी भाव 2025 | लागत, पैदावार, रोग नियंत्रण और मुनाफा
तोरई (Ridge Gourd) भारत में उगाई जाने वाली एक प्रमुख ग्रीष्मकालीन व सब्जी फसल है, जो लगभग हर घर की रसोई में उपयोग की जाती है।
यह एक लता वर्गीय सब्जी (Cucurbitaceae Family) की फसल है, जो कम लागत में अधिक लाभ देती है।तोरई को स्थानीय भाषाओं में कई नामों से जाना जाता है —
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हिंदी में – तोरई या तुरई
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मराठी में – दोडका
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गुजराती में – तुरिया
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अंग्रेज़ी में – Ridge Gourd
यह फसल न केवल घरेलू उपयोग बल्कि व्यावसायिक खेती और बाजार बिक्री के लिए भी बहुत उपयुक्त है।
इसमें विटामिन A, C, कैल्शियम, फाइबर और आयरन भरपूर मात्रा में पाया जाता है।
📍 प्रमुख तोरई उत्पादक राज्य – Major Ridge Gourd Producing States in India
भारत में तोरई की खेती मुख्य रूप से निम्नलिखित राज्यों में की जाती है:
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उत्तर प्रदेश
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बिहार
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पश्चिम बंगाल
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मध्य प्रदेश
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महाराष्ट्र
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गुजरात
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कर्नाटक
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तमिलनाडु
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हरियाणा और पंजाब
👉 गर्म और आर्द्र क्षेत्रों में इसकी खेती सबसे अधिक सफल रहती है।
🌾 तोरई की प्रमुख किस्में – Popular Varieties of Ridge Gourd
किस्म का नाम विशेषता औसत पैदावार (टन/हेक्टेयर) Pusa Nasdar जल्दी तैयार, उच्च पैदावार, स्वादिष्ट फल 150–200 Arka Sumeet रोग प्रतिरोधक, लंबी तोरई 180–220 Co-1 Ridge Gourd तेजी से बढ़ने वाली और आकर्षक आकार की तोरई 160–190 Punjab Sadabahar सभी मौसम में उगने योग्य 170–210 Hybrid 51 F1 बाजार में लोकप्रिय हाइब्रिड किस्म 200–250
☀️ जलवायु और मिट्टी – Climate and Soil Requirements
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जलवायु: तोरई गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी होती है।
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तापमान: 25°C से 35°C
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अत्यधिक ठंड और पाला से पौधों को नुकसान होता है।
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मिट्टी: दोमट, बलुई-दोमट और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर मिट्टी सबसे उपयुक्त।
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pH मान: 6.0 से 7.5
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मिट्टी में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए।
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🚜 खेत की तैयारी – Field Preparation
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खेत की 2–3 बार जुताई करें और समतल करें।
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प्रति हेक्टेयर 20–25 टन गोबर की सड़ी खाद डालें।
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गड्ढे या मेड़ों पर बीज बोना सबसे अच्छा रहता है।
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तोरई की खेती में बेलों को सहारा देने के लिए मचान (trellis system) तैयार करें।
🌱 बीज बुवाई – Sowing Method and Seed Rate
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बीज की मात्रा: 2–2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।
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दूरी: पौधों के बीच 1.5 मीटर और कतारों के बीच 2 मीटर।
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बुवाई का समय:
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उत्तर भारत में: फरवरी–मार्च और जून–जुलाई।
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दक्षिण भारत में: वर्षभर।
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बीज बोने से पहले थिरम या कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/किलो बीज) से उपचार करें।
🌿 उर्वरक प्रबंधन – Fertilizer Management
पोषक तत्व मात्रा (किग्रा/हेक्टेयर) उपयोग का समय नाइट्रोजन (N) 100 दो भागों में – रोपाई के बाद और फूल आने पर फास्फोरस (P₂O₅) 60 बुवाई के समय पोटाश (K₂O) 60 फूल और फल बनने के समय 👉 साथ में 20 टन गोबर की खाद डालना पैदावार को बढ़ाता है।
💧 सिंचाई प्रबंधन – Irrigation Management
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पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें।
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गर्मी में हर 5–6 दिन पर और सर्दी में हर 8–10 दिन पर सिंचाई करें।
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ड्रिप इरिगेशन अपनाने से पानी की बचत होती है और उत्पादन बढ़ता है।
🐛 रोग और कीट प्रबंधन – Disease and Pest Control
प्रमुख रोग
रोग का नाम लक्षण नियंत्रण पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery Mildew) पत्तियों पर सफेद चूर्ण सल्फर आधारित फफूंदनाशी छिड़कें डाउनी मिल्ड्यू (Downy Mildew) पत्तियाँ पीली होकर गिरना मैनकोजेब या कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करें फ्रूट रॉट फलों पर सड़न कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 3 ग्राम/ली. का छिड़काव करें प्रमुख कीट
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एफिड्स (Aphids)
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फल मक्खी (Fruit Fly)
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रेड पंपकिन बीटल
👉 नियंत्रण हेतु नीम तेल (5%) या इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव करें।
🍃 फल तोड़ाई और पैदावार – Harvesting and Yield
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बुवाई के 45–50 दिन बाद फल तोड़ना शुरू किया जा सकता है।
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तोरई को अधपका तोड़ना चाहिए ताकि उसका स्वाद और मुलायमपन बना रहे।
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औसत पैदावार: 150–250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
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उन्नत किस्मों से पैदावार 300 क्विंटल/हेक्टेयर तक पहुँच सकती है।
📊 मंडी भाव 2025 – Ridge Gourd Market Price in India
राज्य औसत भाव (₹/क्विंटल) उच्चतम भाव (₹/क्विंटल) उत्तर प्रदेश 1500 2200 बिहार 1400 2000 महाराष्ट्र 1600 2400 गुजरात 1500 2100 तमिलनाडु 1600 2500 👉 खुदरा बाजार में दर ₹20 से ₹50 प्रति किलो तक मिलती है (गुणवत्ता और मौसम के अनुसार)।
💰 लागत और मुनाफा – Cost and Profit Analysis
विवरण खर्च (₹/हेक्टेयर) बीज 3,000 खाद और उर्वरक 8,000 दवा और कीटनाशक 4,000 सिंचाई और मजदूरी 10,000 रखरखाव 5,000 कुल लागत ₹30,000–₹35,000 👉 औसत आय (200 क्विंटल × ₹1,800) = ₹3,60,000
शुद्ध मुनाफा: ₹3,00,000 प्रति हेक्टेयर तक
🧬 आधुनिक तकनीकें – Advanced Farming Techniques
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ड्रिप इरिगेशन और मल्चिंग – जल बचत और खरपतवार नियंत्रण।
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नेट हाउस खेती – कीटों से बचाव और उत्पादन में वृद्धि।
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जैविक खेती (Organic Farming) – फलों की गुणवत्ता और बाजार मूल्य में वृद्धि।
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High Yield Hybrid Seeds – जल्दी तैयार होने वाली और ज्यादा पैदावार देने वाली किस्में।
🥗 पोषण मूल्य – Nutritional Value of Ridge Gourd
पोषक तत्व मात्रा (100 ग्राम में) कैलोरी 20 kcal कार्बोहाइड्रेट 4.5 ग्राम प्रोटीन 0.5 ग्राम फाइबर 2 ग्राम विटामिन C 18 मि.ग्रा आयरन 0.4 मि.ग्रा 👉 तोरई पाचन तंत्र को मजबूत करती है, रक्त शुद्ध करती है और वजन घटाने में मदद करती है।
🏁 निष्कर्ष – Conclusion
तोरई की खेती किसानों के लिए कम लागत और तेज़ मुनाफे का उत्कृष्ट विकल्प है।
यह फसल 2 महीने में तैयार हो जाती है, इसलिए इसे अल्प अवधि की नगदी फसल (Short Duration Cash Crop) माना जाता है।
उन्नत किस्मों, ड्रिप सिंचाई और जैविक तकनीक अपनाकर किसान प्रति हेक्टेयर लाखों रुपये कमा सकते हैं।“तोरई – हर मौसम की सेहतमंद और लाभकारी सब्जी।” 🌿
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पपीता की खेती और मंडी भाव 2025 | लागत, पैदावार, किस्में और लाभदायक खेती
पपीता (Papaya) एक अत्यंत लाभदायक और पौष्टिक फलदार फसल है, जिसे किसान बहुत कम समय में अच्छी आमदनी के लिए उगा सकते हैं।
यह फल विटामिन A, C, फाइबर, कैल्शियम और एंजाइम पपेन से भरपूर होता है।
पपीता का उपयोग न केवल फल के रूप में बल्कि औषधीय, कॉस्मेटिक और प्रोसेसिंग उद्योगों में भी किया जाता है।भारत में पपीते की खेती लगभग पूरे वर्ष की जा सकती है और यह फसल 9–12 महीने में फल देने लगती है।
🌾 पपीता उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य – Major Papaya Producing States in India
भारत में पपीता उत्पादन में अग्रणी राज्य हैं 👇
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महाराष्ट्र
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गुजरात
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आंध्र प्रदेश
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तमिलनाडु
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उत्तर प्रदेश
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कर्नाटक
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बिहार
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पश्चिम बंगाल
👉 महाराष्ट्र और गुजरात मिलकर देश के कुल उत्पादन का लगभग 45% हिस्सा देते हैं।
🌱 पपीते की प्रमुख किस्में – Popular Varieties of Papaya
किस्म का नाम विशेषता औसत पैदावार (टन/हेक्टेयर) Red Lady 786 अधिक फल, रोग प्रतिरोधक, बाजार में लोकप्रिय 80–100 Pusa Delicious स्वादिष्ट, घरेलू उपयोग के लिए उपयुक्त 70–80 CO-2 लम्बे समय तक टिकने वाले फल 60–75 Washington मोटे फल, रंग आकर्षक 65–85 Taiwan 786 Hybrid जल्दी फल देने वाली और भारी पैदावार वाली किस्म 90–110
☀️ जलवायु और मिट्टी – Climate and Soil Requirements
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जलवायु: पपीते के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सबसे उपयुक्त है।
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तापमान: 22°C से 35°C
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ठंड और पाला इस फसल के लिए हानिकारक है।
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मिट्टी: दोमट, जल निकासी वाली और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर मिट्टी सर्वश्रेष्ठ रहती है।
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pH: 6.0 से 7.5 उपयुक्त।
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👉 भारी और जलभराव वाली मिट्टी में पपीता न लगाएँ क्योंकि इससे जड़ सड़न रोग होता है।
🧑🌾 खेत की तैयारी और पौधरोपण – Land Preparation and Transplanting
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खेत को 2–3 बार गहराई से जोतें और समतल करें।
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प्रत्येक गड्ढे में 10–12 किग्रा गोबर की सड़ी खाद डालें।
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पौधों के बीच की दूरी: 1.8 × 1.8 मीटर
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1 हेक्टेयर में पौधे: लगभग 3,000 से 3,200
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पौधों को रोपने से पहले फफूंदनाशक घोल (कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम/ली.) में डुबोएँ।
🌾 बुवाई का समय – Sowing Season
क्षेत्र बुवाई का समय उत्तरी भारत फरवरी – मार्च और जून – जुलाई दक्षिण भारत जून – दिसंबर पहाड़ी क्षेत्र अप्रैल – अगस्त
🌿 उर्वरक प्रबंधन – Fertilizer Management
पोषक तत्व मात्रा (किग्रा/हेक्टेयर) उपयोग का समय नाइट्रोजन (N) 250 रोपाई के 45 और 90 दिन बाद फास्फोरस (P₂O₅) 150 रोपाई के समय पोटाश (K₂O) 250 फल बनने के समय 👉 हर पौधे में 10–15 किग्रा गोबर की खाद साल में दो बार डालना लाभकारी है।
💧 सिंचाई प्रबंधन – Irrigation Management
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पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करें।
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गर्मी के मौसम में हर 6–8 दिन पर और सर्दी में हर 10–12 दिन पर सिंचाई करें।
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ड्रिप सिंचाई प्रणाली (Drip Irrigation) से पानी की बचत और फल की गुणवत्ता बढ़ती है।
🪰 रोग और कीट प्रबंधन – Disease and Pest Control
प्रमुख रोग
रोग का नाम लक्षण नियंत्रण पत्ती मुरझाना (Leaf Curl) पत्तियाँ सिकुड़ना, फल विकृत नीम तेल 5% छिड़काव करें मोज़ेक वायरस पत्तियों पर पीले धब्बे रोगग्रस्त पौधे निकाल दें जड़ सड़न (Root Rot) पौधा मुरझा जाता है कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम/लीटर छिड़कें प्रमुख कीट
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एफिड्स (Aphids)
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मिली बग्स (Mealy Bugs)
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फ्रूट फ्लाई (Fruit Fly)
👉 नियंत्रण हेतु नीम तेल या इमिडाक्लोप्रिड का हल्का छिड़काव करें।
🍈 फल तोड़ाई और पैदावार – Harvesting and Yield
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पपीते के पौधे रोपाई के 8–10 महीने बाद फल देना शुरू कर देते हैं।
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फलों को आधा पका होने पर तोड़ें ताकि बाजार तक सुरक्षित पहुँचे।
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औसत पैदावार: 80–120 टन प्रति हेक्टेयर
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अच्छी देखभाल करने पर यह उत्पादन 150 टन/हेक्टेयर तक पहुँच सकता है।
📈 पपीता मंडी भाव 2025 – Papaya Market Price in India
राज्य औसत भाव (₹/क्विंटल) अधिकतम भाव (₹/क्विंटल) महाराष्ट्र 2,000 2,800 गुजरात 2,200 3,000 उत्तर प्रदेश 1,800 2,400 बिहार 1,900 2,500 तमिलनाडु 2,300 3,200 👉 खुदरा बाजार में दर ₹30–₹60 प्रति किलो तक मिलती है,
विशेषकर Red Lady और Taiwan Hybrid किस्मों के लिए।
💰 लागत और मुनाफा – Cost and Profit Analysis
विवरण खर्च (₹/हेक्टेयर) पौधे और बीज 10,000 खाद और उर्वरक 15,000 सिंचाई और दवा 7,000 मजदूरी 10,000 रखरखाव और अन्य खर्च 8,000 कुल लागत ₹50,000–₹55,000 👉 औसत आय (100 टन × ₹2,000) = ₹2,00,000
शुद्ध मुनाफा: ₹1,40,000–₹1,50,000 प्रति हेक्टेयर
🧬 आधुनिक तकनीकें – Modern Farming Techniques
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ड्रिप सिंचाई और मल्चिंग: पानी की बचत और खरपतवार नियंत्रण।
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टिश्यू कल्चर पौधे: समान आकार और अधिक उपज।
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जैविक खेती: बेहतर स्वाद, ऊँची बाजार कीमत।
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Net House Cultivation: कीटों से सुरक्षा और सालभर उत्पादन।
🍃 पोषण मूल्य – Nutritional Value of Papaya
पोषक तत्व मात्रा (100 ग्राम में) कैलोरी 43 kcal कार्बोहाइड्रेट 11 ग्राम फाइबर 2 ग्राम विटामिन C 60 मि.ग्रा विटामिन A 950 IU पोटैशियम 180 मि.ग्रा 👉 पपीता पाचन में सहायक, त्वचा के लिए लाभदायक और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला फल है।
🏁 निष्कर्ष – Conclusion
पपीता की खेती किसानों के लिए कम लागत और अधिक लाभ का उत्तम विकल्प है।
यदि किसान उन्नत किस्में, जैविक खाद और वैज्ञानिक तकनीक अपनाते हैं,
तो वे प्रति हेक्टेयर ₹1.5 लाख से अधिक का लाभ कमा सकते हैं।“पपीता – पोषण, स्वास्थ्य और समृद्धि का सुनहरा फल।” 🍈
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पालक (Spinach) की खेती और मंडी भाव 2025 | लागत, पैदावार, किस्में और लाभदायक खेती
पालक एक प्रमुख हरी पत्तेदार सब्जी (Leafy Vegetable) है, जिसे विटामिन, खनिज, आयरन और फाइबर का समृद्ध स्रोत माना जाता है।
यह सर्दी और गर्मी दोनों मौसमों में उगाई जा सकती है, इसलिए इसे सालभर की फसल (Year-Round Crop) कहा जाता है।पालक का उपयोग घरों, होटलों, कैटरिंग, और प्रोसेसिंग यूनिटों में बड़े पैमाने पर होता है।
यह किसानों के लिए कम अवधि में अधिक लाभ देने वाली नकदी फसल (Short Duration Cash Crop) है।
प्रमुख पालक उत्पादक राज्य – Major Spinach Producing States
भारत में पालक की खेती मुख्यतः इन राज्यों में की जाती है 👇
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उत्तर प्रदेश
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महाराष्ट्र
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मध्य प्रदेश
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बिहार
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हरियाणा
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पश्चिम बंगाल
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गुजरात
इन राज्यों में पालक खेतों, बागीचों और नालों के किनारे भी सफलतापूर्वक उगाई जाती है।
पालक की प्रमुख किस्में – Improved Varieties of Spinach
किस्म का नाम विशेषता औसत पैदावार (टन/हेक्टेयर) Punjab Green जल्दी तैयार, गाढ़ी हरी पत्तियाँ 100–120 All Green अधिक पत्तियाँ, अच्छी गुणवत्ता 80–100 Jobner Green सर्दी में अधिक उपज 90–110 Pusa Jyoti रोग प्रतिरोधक और तेज़ वृद्धि 100–120 Arka Anupama गर्मी में भी उपयुक्त 90–100
जलवायु और मिट्टी – Climate and Soil Requirements
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जलवायु: पालक ठंडी और नम जलवायु में सबसे अच्छी होती है।
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अंकुरण के लिए तापमान: 18°C से 25°C
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उच्च तापमान पर पत्तियाँ कठोर और स्वादहीन हो जाती हैं।
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मिट्टी: दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी जिसमें जैविक पदार्थ (Organic Matter) पर्याप्त हो, उपयुक्त रहती है।
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pH: 6.0 से 7.0 सबसे अच्छा।
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जल निकासी (Drainage) अच्छी होनी चाहिए।
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बुवाई का समय और बीज दर – Sowing Time and Seed Rate
क्षेत्र बुवाई का समय बीज की मात्रा (किग्रा/हेक्टेयर) उत्तरी भारत अक्टूबर – फरवरी 25–30 दक्षिण भारत अगस्त – दिसंबर 30–35 गर्मी की फसल फरवरी – अप्रैल 35 👉 बीजों को बुवाई से पहले 8–10 घंटे पानी में भिगोकर बोने से अंकुरण दर बढ़ जाती है।
खेत की तैयारी और बुवाई – Field Preparation and Planting
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खेत की 2–3 बार जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरा बनाएं।
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20–25 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की सड़ी खाद डालें।
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क्यारियाँ (Beds) बनाकर सिंचाई नालियाँ छोड़ें।
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पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25–30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 5–8 सेमी रखें।
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बीजों को हल्की मिट्टी से ढक दें।
उर्वरक प्रबंधन – Fertilizer Management
पोषक तत्व मात्रा (किग्रा/हेक्टेयर) समय नाइट्रोजन (N) 80 आधी बुवाई के समय, आधी कटाई के बाद फास्फोरस (P₂O₅) 40 बुवाई के समय पोटाश (K₂O) 40 बुवाई के समय 👉 इसके अलावा 2–3 टन वर्मी कम्पोस्ट डालना उपज बढ़ाता है।
सिंचाई प्रबंधन – Irrigation Management
पालक में नमी बनाए रखना आवश्यक है क्योंकि सूखी मिट्टी पत्तियों की गुणवत्ता कम कर देती है।
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पहली सिंचाई – बुवाई के तुरंत बाद।
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उसके बाद हर 6–8 दिन पर हल्की सिंचाई करें।
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गर्मी में 4–5 दिन पर सिंचाई करें।
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ड्रिप सिंचाई प्रणाली से पानी की बचत और रोगों में कमी आती है।
रोग और कीट प्रबंधन – Disease and Pest Control
प्रमुख रोग
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डाउनी माइल्ड्यू (Downy Mildew): पत्तियों पर सफेद दाग बनते हैं — मैनकोजेब 0.25% छिड़काव करें।
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लीफ स्पॉट (Leaf Spot): कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें।
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फ्यूसरियम विल्ट: फसल चक्र और जैविक नियंत्रण अपनाएँ।
प्रमुख कीट
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एफिड्स (Aphids): नीम तेल 5% का छिड़काव करें।
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थ्रिप्स: इमिडाक्लोप्रिड का हल्का स्प्रे करें।
कटाई और पैदावार – Harvesting and Yield
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पालक की फसल 25–30 दिन में कटाई योग्य हो जाती है।
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पत्तियाँ हरी और कोमल रहते समय ही काटें।
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हर 20 दिन के अंतराल पर 3–4 कटाई संभव है।
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औसतन पैदावार: 100–120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
कटाई के बाद पालक को ठंडी जगह पर रखें ताकि ताजगी बनी रहे।
पालक मंडी भाव 2025 – Spinach Market Price in India
राज्य औसत भाव (₹/क्विंटल) अधिकतम भाव (₹/क्विंटल) उत्तर प्रदेश 1,800 2,200 हरियाणा 1,700 2,100 गुजरात 1,900 2,300 महाराष्ट्र 1,800 2,400 बिहार 1,600 2,000 👉 खुदरा बाजार में दर ₹20–₹40 प्रति किलो तक पहुँच जाती है।
लागत और मुनाफा – Cost and Profit Analysis
विवरण अनुमानित खर्च (₹/हेक्टेयर) बीज और खाद 8,000 सिंचाई और दवा 5,000 मजदूरी 10,000 अन्य खर्च 3,000 कुल लागत ₹25,000–₹30,000 👉 औसत आय (100 क्विंटल × ₹2,000) = ₹2,00,000
शुद्ध मुनाफा: ₹1,60,000–₹1,70,000 प्रति हेक्टेयर
आधुनिक तकनीकें – Modern Farming Practices
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ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई: पानी की बचत और अधिक पैदावार।
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जैविक खाद (Organic Fertilizer): मिट्टी की गुणवत्ता और स्वाद बेहतर।
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नेट हाउस खेती: कीटों से सुरक्षा और सालभर उत्पादन।
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Precision Farming: मिट्टी की नमी और पोषक तत्वों की निगरानी।
पोषण मूल्य और उपयोग – Nutritional Value and Uses
पालक में भरपूर मात्रा में विटामिन A, C, K, आयरन, कैल्शियम और फोलेट पाया जाता है।
यह रक्त की कमी (Anemia) दूर करने, पाचन शक्ति बढ़ाने और प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने में मदद करता है।मुख्य उपयोग:
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सब्ज़ी, पराठा, सूप, जूस, पालक पनीर
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औषधीय उपयोग और प्रोसेसिंग यूनिटों में पाउडर निर्माण
निष्कर्ष – Conclusion
पालक की खेती किसानों के लिए कम समय, कम लागत और अधिक मुनाफे वाली फसल है।
यह वर्षभर उगाई जा सकती है और बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है।👉 यदि किसान उन्नत किस्में, जैविक खाद और ड्रिप सिंचाई अपनाते हैं,
तो वे प्रति हेक्टेयर ₹1.5 लाख से अधिक का शुद्ध लाभ प्राप्त कर सकते हैं।“पालक – स्वास्थ्य, पोषण और किसान समृद्धि की हरित पहचान।” 🌿
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