लौकी (Bottle Gourd) जिसे हिंदी में घीया, दूधी या लाउकी भी कहा जाता है, भारत की एक प्रमुख ग्रीष्मकालीन सब्जी (Summer Vegetable) है। यह पौष्टिक, औषधीय गुणों से भरपूर और कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल है।
लौकी में लगभग 96% पानी, विटामिन C, फाइबर, पोटाशियम और आयरन पाया जाता है। यह शरीर को ठंडक देने के साथ पाचन के लिए अत्यंत लाभदायक मानी जाती है।
भारत में लौकी की खेती लगभग हर राज्य में की जाती है — विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और महाराष्ट्र में। लौकी की मांग पूरे साल बनी रहती है, जिससे किसान इसे नकदी फसल (Cash Crop) के रूप में उगाते हैं।
प्रमुख लौकी की किस्में – Bottle Gourd Varieties
भारत में लौकी की कई किस्में उगाई जाती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख और लोकप्रिय किस्में हैं –
- 
पूसा नवीन (Pusa Naveen) – लंबे, हरे और आकर्षक फल; अधिक पैदावार।
 - 
पूसा संतोष (Pusa Santosh) – जल्दी तैयार होने वाली और गर्मी में उपयुक्त।
 - 
पूसा हाइब्रिड 3 (Pusa Hybrid-3) – उच्च उत्पादन क्षमता और रोग प्रतिरोधी।
 - 
अरका बहार (Arka Bahar) – एकसमान फल आकार और बाजार में अच्छी मांग।
 - 
नरेंद्र लौकी-1 (Narendra Lauki-1) – पूर्वी भारत के लिए उपयुक्त किस्म।
 - 
Kashi Ganga और Kashi Bahar – नई उन्नत हाइब्रिड किस्में, जो गर्मी और बारिश दोनों में उपयुक्त हैं।
 
जलवायु और मिट्टी – Climate and Soil
- 
जलवायु: लौकी गर्म जलवायु की फसल है। इसे 25°C से 35°C तापमान सबसे उपयुक्त लगता है।
- 
ठंड या पाले की स्थिति में फसल को नुकसान होता है।
 
 - 
 - 
वर्षा: 70–100 सेमी वार्षिक वर्षा पर्याप्त है।
 - 
मिट्टी: दोमट या बलुई-दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी अच्छी हो, सर्वोत्तम रहती है।
- 
pH मान 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
 
 - 
 
खेत की तैयारी और बुवाई – Field Preparation and Sowing
- 
खेत की 2–3 बार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा करें।
 - 
20–25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएँ।
 - 
नालियाँ बनाकर बीज बोएँ या पौधे लगाएँ।
 - 
बीज की मात्रा: 2.5–3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहती है।
 - 
पंक्ति से पंक्ति दूरी – 2.5 मीटर
 - 
पौधे से पौधे की दूरी – 1 मीटर
 - 
बुवाई का समय:
- 
गर्मी की फसल: फरवरी–मार्च
 - 
वर्षा की फसल: जून–जुलाई
 - 
शरद ऋतु की फसल: अक्टूबर–नवंबर
 
 - 
 
उर्वरक और सिंचाई प्रबंधन – Fertilizer and Irrigation Management
उर्वरक
- 
गोबर की खाद या कंपोस्ट: 20–25 टन प्रति हेक्टेयर।
 - 
रासायनिक उर्वरक (NPK):
- 
नत्रजन (N) – 80 किग्रा
 - 
फॉस्फोरस (P) – 40 किग्रा
 - 
पोटाश (K) – 40 किग्रा
 
 - 
 - 
आधा NPK बुवाई के समय और बाकी आधा फल लगने के समय दें।
 
सिंचाई
- 
गर्मी में हर 5–6 दिन में एक बार सिंचाई करें।
 - 
वर्षा ऋतु में जलभराव से बचाव करें।
 - 
ड्रिप इरिगेशन (Drip Irrigation) से पानी की बचत और उपज दोनों में वृद्धि होती है।
 
पौध प्रबंधन और बेल प्रशिक्षण – Crop Management and Training
- 
पौधों को बेलों के रूप में फैलने दें या मचान (Trellis) पर चढ़ाएँ।
 - 
मचान पद्धति से फल सीधा, लंबा और सुंदर बनता है जिससे बाजार मूल्य बढ़ता है।
 - 
खरपतवार नियंत्रण के लिए 2–3 बार हल्की गुड़ाई करें।
 - 
मृदा में नमी बनाए रखें।
 
रोग और कीट प्रबंधन – Disease and Pest Control
प्रमुख रोग
- 
पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery Mildew): पत्तियों पर सफेद चूर्ण जैसा परत दिखता है।
- 
सल्फर आधारित दवा (0.2%) का छिड़काव करें।
 
 - 
 - 
डाउनी मिल्ड्यू (Downy Mildew): पत्तियों पर पीले-भूरे धब्बे।
- 
मैनकोजेब 0.25% का छिड़काव करें।
 
 - 
 - 
मोज़ेक वायरस (Mosaic Virus): पत्तियाँ मुरझा जाती हैं।
- 
रोगग्रस्त पौधों को तुरंत उखाड़ें।
 - 
सफेद मक्खी नियंत्रण करें।
 
 - 
 
प्रमुख कीट
- 
फल मक्खी (Fruit Fly): फलों पर छेद करती है।
- 
ट्रैप लगाएँ, नीम आधारित कीटनाशक का छिड़काव करें।
 
 - 
 - 
एफिड्स (Aphids): पौधे का रस चूसते हैं।
- 
इमिडाक्लोप्रिड 0.03% का छिड़काव करें।
 
 - 
 
पैदावार और कटाई – Yield and Harvesting
- 
बुवाई के 60–70 दिन बाद फल तोड़ने योग्य हो जाते हैं।
 - 
एक पौधे से औसतन 15–20 लौकियाँ मिल सकती हैं।
 - 
प्रति हेक्टेयर पैदावार: 250–300 क्विंटल तक।
 - 
लौकी को नरम अवस्था में ही तोड़ें ताकि स्वाद और बाजार मूल्य बना रहे।
 
लौकी का व्यापार और मंडी भाव 2025 – Bottle Gourd Market Price
भारत में प्रमुख लौकी उत्पादक राज्य हैं –
उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात।
- 
थोक बाजार मूल्य: ₹800 से ₹1800 प्रति क्विंटल (गुणवत्ता और सीजन के अनुसार)।
 - 
खुदरा बाजार दर: ₹20 से ₹40 प्रति किलो।
 - 
निर्यात: भारत से खाड़ी देशों (UAE, कतर, ओमान) को लौकी का निर्यात किया जाता है।
 
लागत और मुनाफा – Cost and Profit
| खर्च का विवरण | अनुमानित लागत (₹ प्रति हेक्टेयर) | 
|---|---|
| बीज व पौध सामग्री | 5,000 – 7,000 | 
| खाद व उर्वरक | 15,000 – 20,000 | 
| सिंचाई व कीटनाशक | 10,000 – 15,000 | 
| मजदूरी | 20,000 – 25,000 | 
| अन्य खर्च | 10,000 | 
| कुल लागत | ₹60,000 – ₹75,000 प्रति हेक्टेयर | 
👉 औसतन ₹1.5 से ₹2.5 लाख प्रति हेक्टेयर तक का शुद्ध लाभ संभव है।
यदि ड्रिप सिंचाई और हाइब्रिड बीज का उपयोग किया जाए तो मुनाफा ₹3 लाख तक पहुँच सकता है।
आधुनिक तकनीक और सुझाव – Modern Techniques and Tips
- 
ड्रिप इरिगेशन और मल्चिंग अपनाएँ ताकि पानी और खाद दोनों की बचत हो।
 - 
जैविक खेती (Organic Farming) से लौकी की गुणवत्ता और बाजार मूल्य बढ़ता है।
 - 
नेट हाउस खेती में वर्षभर लौकी उगाई जा सकती है।
 - 
मचान पद्धति (Trellis System) से बेल और फलों का बेहतर विकास होता है।
 
निष्कर्ष – Conclusion
लौकी की खेती किसानों के लिए कम लागत और अधिक लाभ वाली फसल है।
इसकी मांग हर मौसम में बनी रहती है, और घरेलू व निर्यात दोनों बाजारों में इसका अच्छा मूल्य मिलता है।
यदि किसान उच्च किस्में, जैविक खाद, संतुलित सिंचाई और रोग नियंत्रण का पालन करें तो लौकी की खेती से स्थिर आय और बढ़िया मुनाफा सुनिश्चित किया जा सकता है।