तोरई (Ridge Gourd) भारत में उगाई जाने वाली एक प्रमुख ग्रीष्मकालीन व सब्जी फसल है, जो लगभग हर घर की रसोई में उपयोग की जाती है।
यह एक लता वर्गीय सब्जी (Cucurbitaceae Family) की फसल है, जो कम लागत में अधिक लाभ देती है।
तोरई को स्थानीय भाषाओं में कई नामों से जाना जाता है —
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हिंदी में – तोरई या तुरई
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मराठी में – दोडका
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गुजराती में – तुरिया
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अंग्रेज़ी में – Ridge Gourd
यह फसल न केवल घरेलू उपयोग बल्कि व्यावसायिक खेती और बाजार बिक्री के लिए भी बहुत उपयुक्त है।
इसमें विटामिन A, C, कैल्शियम, फाइबर और आयरन भरपूर मात्रा में पाया जाता है।
📍 प्रमुख तोरई उत्पादक राज्य – Major Ridge Gourd Producing States in India
भारत में तोरई की खेती मुख्य रूप से निम्नलिखित राज्यों में की जाती है:
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उत्तर प्रदेश
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बिहार
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पश्चिम बंगाल
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मध्य प्रदेश
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महाराष्ट्र
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गुजरात
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कर्नाटक
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तमिलनाडु
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हरियाणा और पंजाब
👉 गर्म और आर्द्र क्षेत्रों में इसकी खेती सबसे अधिक सफल रहती है।
🌾 तोरई की प्रमुख किस्में – Popular Varieties of Ridge Gourd
| किस्म का नाम | विशेषता | औसत पैदावार (टन/हेक्टेयर) |
|---|---|---|
| Pusa Nasdar | जल्दी तैयार, उच्च पैदावार, स्वादिष्ट फल | 150–200 |
| Arka Sumeet | रोग प्रतिरोधक, लंबी तोरई | 180–220 |
| Co-1 Ridge Gourd | तेजी से बढ़ने वाली और आकर्षक आकार की तोरई | 160–190 |
| Punjab Sadabahar | सभी मौसम में उगने योग्य | 170–210 |
| Hybrid 51 F1 | बाजार में लोकप्रिय हाइब्रिड किस्म | 200–250 |
☀️ जलवायु और मिट्टी – Climate and Soil Requirements
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जलवायु: तोरई गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी होती है।
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तापमान: 25°C से 35°C
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अत्यधिक ठंड और पाला से पौधों को नुकसान होता है।
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मिट्टी: दोमट, बलुई-दोमट और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर मिट्टी सबसे उपयुक्त।
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pH मान: 6.0 से 7.5
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मिट्टी में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए।
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🚜 खेत की तैयारी – Field Preparation
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खेत की 2–3 बार जुताई करें और समतल करें।
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प्रति हेक्टेयर 20–25 टन गोबर की सड़ी खाद डालें।
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गड्ढे या मेड़ों पर बीज बोना सबसे अच्छा रहता है।
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तोरई की खेती में बेलों को सहारा देने के लिए मचान (trellis system) तैयार करें।
🌱 बीज बुवाई – Sowing Method and Seed Rate
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बीज की मात्रा: 2–2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।
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दूरी: पौधों के बीच 1.5 मीटर और कतारों के बीच 2 मीटर।
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बुवाई का समय:
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उत्तर भारत में: फरवरी–मार्च और जून–जुलाई।
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दक्षिण भारत में: वर्षभर।
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बीज बोने से पहले थिरम या कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/किलो बीज) से उपचार करें।
🌿 उर्वरक प्रबंधन – Fertilizer Management
| पोषक तत्व | मात्रा (किग्रा/हेक्टेयर) | उपयोग का समय |
|---|---|---|
| नाइट्रोजन (N) | 100 | दो भागों में – रोपाई के बाद और फूल आने पर |
| फास्फोरस (P₂O₅) | 60 | बुवाई के समय |
| पोटाश (K₂O) | 60 | फूल और फल बनने के समय |
👉 साथ में 20 टन गोबर की खाद डालना पैदावार को बढ़ाता है।
💧 सिंचाई प्रबंधन – Irrigation Management
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पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें।
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गर्मी में हर 5–6 दिन पर और सर्दी में हर 8–10 दिन पर सिंचाई करें।
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ड्रिप इरिगेशन अपनाने से पानी की बचत होती है और उत्पादन बढ़ता है।
🐛 रोग और कीट प्रबंधन – Disease and Pest Control
प्रमुख रोग
| रोग का नाम | लक्षण | नियंत्रण |
|---|---|---|
| पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery Mildew) | पत्तियों पर सफेद चूर्ण | सल्फर आधारित फफूंदनाशी छिड़कें |
| डाउनी मिल्ड्यू (Downy Mildew) | पत्तियाँ पीली होकर गिरना | मैनकोजेब या कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करें |
| फ्रूट रॉट | फलों पर सड़न | कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 3 ग्राम/ली. का छिड़काव करें |
प्रमुख कीट
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एफिड्स (Aphids)
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फल मक्खी (Fruit Fly)
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रेड पंपकिन बीटल
👉 नियंत्रण हेतु नीम तेल (5%) या इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव करें।
🍃 फल तोड़ाई और पैदावार – Harvesting and Yield
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बुवाई के 45–50 दिन बाद फल तोड़ना शुरू किया जा सकता है।
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तोरई को अधपका तोड़ना चाहिए ताकि उसका स्वाद और मुलायमपन बना रहे।
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औसत पैदावार: 150–250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
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उन्नत किस्मों से पैदावार 300 क्विंटल/हेक्टेयर तक पहुँच सकती है।
📊 मंडी भाव 2025 – Ridge Gourd Market Price in India
| राज्य | औसत भाव (₹/क्विंटल) | उच्चतम भाव (₹/क्विंटल) |
|---|---|---|
| उत्तर प्रदेश | 1500 | 2200 |
| बिहार | 1400 | 2000 |
| महाराष्ट्र | 1600 | 2400 |
| गुजरात | 1500 | 2100 |
| तमिलनाडु | 1600 | 2500 |
👉 खुदरा बाजार में दर ₹20 से ₹50 प्रति किलो तक मिलती है (गुणवत्ता और मौसम के अनुसार)।
💰 लागत और मुनाफा – Cost and Profit Analysis
| विवरण | खर्च (₹/हेक्टेयर) |
|---|---|
| बीज | 3,000 |
| खाद और उर्वरक | 8,000 |
| दवा और कीटनाशक | 4,000 |
| सिंचाई और मजदूरी | 10,000 |
| रखरखाव | 5,000 |
| कुल लागत | ₹30,000–₹35,000 |
👉 औसत आय (200 क्विंटल × ₹1,800) = ₹3,60,000
शुद्ध मुनाफा: ₹3,00,000 प्रति हेक्टेयर तक
🧬 आधुनिक तकनीकें – Advanced Farming Techniques
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ड्रिप इरिगेशन और मल्चिंग – जल बचत और खरपतवार नियंत्रण।
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नेट हाउस खेती – कीटों से बचाव और उत्पादन में वृद्धि।
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जैविक खेती (Organic Farming) – फलों की गुणवत्ता और बाजार मूल्य में वृद्धि।
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High Yield Hybrid Seeds – जल्दी तैयार होने वाली और ज्यादा पैदावार देने वाली किस्में।
🥗 पोषण मूल्य – Nutritional Value of Ridge Gourd
| पोषक तत्व | मात्रा (100 ग्राम में) |
|---|---|
| कैलोरी | 20 kcal |
| कार्बोहाइड्रेट | 4.5 ग्राम |
| प्रोटीन | 0.5 ग्राम |
| फाइबर | 2 ग्राम |
| विटामिन C | 18 मि.ग्रा |
| आयरन | 0.4 मि.ग्रा |
👉 तोरई पाचन तंत्र को मजबूत करती है, रक्त शुद्ध करती है और वजन घटाने में मदद करती है।
🏁 निष्कर्ष – Conclusion
तोरई की खेती किसानों के लिए कम लागत और तेज़ मुनाफे का उत्कृष्ट विकल्प है।
यह फसल 2 महीने में तैयार हो जाती है, इसलिए इसे अल्प अवधि की नगदी फसल (Short Duration Cash Crop) माना जाता है।
उन्नत किस्मों, ड्रिप सिंचाई और जैविक तकनीक अपनाकर किसान प्रति हेक्टेयर लाखों रुपये कमा सकते हैं।
“तोरई – हर मौसम की सेहतमंद और लाभकारी सब्जी।” 🌿